Friday April 18, 9400

संत नामदेवजी


संत नामदेवजी का जन्म भक्त कबीरजी से 130 वर्ष पूर्व 1270 में महाराष्ट्र के पण्ढरपुर में हुआ था। उनके गुरु महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत ज्ञानेश्वर थे। उन्होंने बह्मविद्या को लोक सुलभ बनाकर उसका महाराष्ट्र में प्रचार किया तो संत नामदेवजी ने महाराष्ट्र से लेकर पंजाब तक उत्तर भारत में ‘हरिनाम’ की वर्षा की।

भक्त नामदेवजी का महाराष्ट्र में वही स्थान है, जो भक्त कबीरजी अथवा सूरदास का उत्तरी भारत में है। उनका सारा जीवन मधुर भक्ति-भाव से ओतप्रोत था। विट्ठल-भक्ति भक्त नामदेवजी को विरासत में मिली। उनका संपूर्ण जीवन मानव कल्याण के लिए समर्पित रहा। मूर्ति पूजा, कर्मकांड, जातपात के विषय में उनके स्पष्ट विचारों के कारण हिन्दी के विद्वानों ने उन्हें कबीरजी का आध्यात्मिक अग्रज माना है।

संत नामदेवजी ने पंजाबी में पद्य रचना भी की। भक्त नामदेवजी की बाणी में सरलता है। वह ह्रदय को बाँधे रखती है। उनके प्रभु भक्ति भरे भावों एवं विचारों का प्रभाव पंजाब के लोगों पर आज भी है। भक्त नामदेवजी के महाप्रयाण से तीन सौ साल बाद श्री गुरु अरजनदेवजी ने उनकी बाणी का संकलन श्री गुरु ग्रंथ साहिब में किया। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में उनके 61 पद, 3 श्लोक, 18 रागों में संकलित है।

वास्तव में श्री गुरु साहिब में नामदेवजी की वाणी अमृत का वह निरंतर बहता हुआ झरना है,   जिसमें संपूर्ण मानवता को पवित्रता प्रदान करने का सामर्थ्य है। नामदेव जी विट्ठल भगवान के बहुत बड़े भगत थे| उनका सारा दिन विट्ठल भगवान के दर्शन, भजन कीर्तन में ही गुजर जाता था |  जय नामदेव

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